Monday, March 3, 2014

*गंध के हस्ताक्षर* भेजता ऋतुराज किसलय-पत्र पर इंद्रधनुषी रंग वाले गंध के हस्ताक्षर!झूमते हैं खेत वन-उपवन हवा की ताल पर थिरकते बंसवारियों के अधर पर फिर वेणु के स्वर विवश होकर पंचशर की छुअन से लग रहे उन्मत्त सारी सृष्टि के ही चराचर! आज नख-शिख फिर प्रकृति के अंग मदिराने लगे, और निष्ठुर पत्थरों तक सुमन मुस्काने लगे पिघलता है पुनः कण-कण का ह्रदय हर कहीं पर अब चतुर्दिक फागुनी मनुहार पर! 

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